आँखें देखती रहती हैं...ज़बान चखती रहती है...कान सुनते रहते हैं...नाक सूंघती रहती है...खाल महसूस करती है...इन पांचो इन्द्रियों से हम पल पल काम लेते हैं। दिल जानता है, दिमाग छानता है...पर गर्द का ढेर हर दिन इतना जमा होता है कि दिमाग़ सांस नहीं ले पाता और इतना मसरूफ़ हो जाता है कि उसके पास अगर कुछ रह जाता है तो वो होती है बस एक उलझन।
Friday, May 28, 2010
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2 comments:
hmmmmm
sahii kahaa.....skhaa.....isi uljhan se jujhte jujhate,,,,zindgii saalon ka safr tay kr leti he.......:)
sach hai........but the problem is ki ye uljhane kabhi nahi sulajhti
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