Wednesday, June 16, 2010

संडे की शामें


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Friday, May 28, 2010

५ का गणित

आँखें देखती रहती हैं...ज़बान चखती रहती है...कान सुनते रहते हैं...नाक सूंघती रहती है...खाल महसूस करती है...इन पांचो इन्द्रियों से हम पल पल काम लेते हैं। दिल जानता है, दिमाग छानता है...पर गर्द का ढेर हर दिन इतना जमा होता है कि दिमाग़ सांस नहीं ले पाता और इतना मसरूफ़ हो जाता है कि उसके पास अगर कुछ रह जाता है तो वो होती है बस एक उलझन।